"ॐ तत्पुरुषाय विद्ध्महे महादेवाय धिमाही तन्नो रूद्र: प्रचोदयात!!!"

Dec 25, 2010

घरेलु नुश्खे





खीरा आजमाएं, पिंपल्स भगाएं
कील, मुंहासे और पिंपल्स चेहरे की खूबरसूरती बिगाड़ देते हैं। ये स्कीन की चमक को तो फीका करते ही हैं, साथ में पिंपल्स के कारण फेस पर पड़ने वाले दाग-धब्बे और भी परेशान करते हैं। यदि आप भी पिंपल्स की समस्या से परेशान हैं, तो इन घरेलू नुस्खों को आजमा सकते हैं :

- स्कीन को हेल्दी बनाने और नैचुरल ग्लो बरकरार रखने के लिए दिन भर में कम से कम एक लीटर पानी पीना बेहद जरूरी है।
- पिंपल्स घटाने के लिए नींबू का रस लगा सकते हैं।
- एक चम्मच मूंगफली का तेल और एक चम्मच नींबू का रस मिलाकर चेहरे की मालिश करें। इससे मुंहासे दूर होते हैं।
- खीरे को कद्दूकस में किस लें। अब इसे चेहरे, आंखों और गर्दन पर लगाएं। 15-20 मिनट तक सूखने दें और फिर पानी से धो लें। यह स्कीन को कॉम्लेक्शन के लिए बेहतरीन टॉनिक की तरह काम करता है। इसका नियमित इस्तेमाल करने से पिंपल्स और ब्लैकहेड्स दूर होते हैं।
- नीम की पत्तियों के साथ हल्दी पाउडर को मिलाकर पेस्ट बना लें। पिंपल्स और कील,मुंहासों पर इसे लगाएं। 25-30 मिनट के बाद इसे गर्मपानी से धो लें।
- लौंग से बना फेस मास्क या मेथी की पत्तियों को पीसकर मुंहासों पर लगाएं।
- मीट, शक्कर, कड़क चाय या कॉफी, आचार, सॉफ्ट ड्रिंक, कैंडी, आईसक्रीम आदि खाद्य पदार्थ पिंपल्स को बढ़ाते हैं। इनका सेवन करने बचें।
- संतरे के छिलके से बने पाउडर पिंपल्स के उपचार में रामबाण हैं। इसमें पाए जाने वाले औषधीय गुण के कारण कुछ ही दिनों में पिंपल्स की समस्या से छुटकारा मिल सकता है।
- पके टमाटर या खीरे के गुदे को पिंपल्स पर लगाएं। एक घंटे के बाद चेहा पानी से धो लें।
- एलोवेरा मुंहासे से बचाव में कारगर होता है। यह मुंहासे की वजह से चेहरे पर पड़ने वाले गड्ढों को भी भरता है।
- मसूर की दाल के पाडडर को दूध में भिंगोकर और उसमें कपूर व घी डालकर मुंहासे वाली जगह पर लगाएं। मुंहासे जल्दी दूर हो जाएंगे।

एसिडिटी से छुटकारा
तेजी से बदल रही लाइफ स्टाइल और फास्ट फूड कल्चर ने कई रोगों को बढ़ावा दिया है। एसिडिटी उन्हीं में से एक है। देर तक भूखे रहना, फास्ट फूड खाना, अनियमित दिनचर्या एसिडिटी के कुछ प्रमुख कारण हैं। यदि आपको एसिडिटी की समस्या है, तो आप इस दौरान होने वाले असहनीय दर्द से जरूर वाकिफ होंगे और इस दर्द से छुटकारा पाने के लिए दवाओं का इस्तेमाल भी करते होंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बिना दवा लिए प्राकृतिक उपचार से एसिडिटी के दर्द से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है।

पपीता

एसिडिटी के शिकार रोगियों के लिए पपीता रामबाण की तरह है। पपीते एसिडिटी के इलाज में कारगर है। इसमें पैपीन नामक एंजाइम पाया जाता है, जो पाचन क्रिया सुधारने में मदद करता है। इसके साथ ही पपीते में पोटैशियम भी पाया जाता है, जो आंतों के लिए लाभदायक है। पपीता में मौजूद विटामिन सी एसिडिटी को बनने से रोकता है। एसिडिटी के उपचार के लिए पपीते को फल के रूप में खाया जा सकता है। हालांकि, जिन्हें फल के रूप में पपीता पसंद न हो उनके लिए पैपीन नामक गोलियां भी बाजार में उपलब्ध हैं।

चेरी

चेरी में काफी मात्रा में एंटीऑक्सिडेंट पाया जाता है, जो एसिडिटी के इलाज में मदद करता है। इसके साथ ही यह विटामिन सी और पोटैशियम का भी अच्छा स्रोत है। यह पाचन क्रिया को बेहतर बनाने में मदद करते हैं। एसिडिटी से छुटकारे के लिए आप चेरी को फल के रूप में खा सकते हैं या फिर चेरी का ज्यूस भी फायदेमंद होगा।

अदरक

अदरक पेट के लिए काफी अच्छा होता है। अदरक के टुकड़ों को पानी में उबालकर इसे पी सकते हैं। इसका स्वाद काफी तीखा होता है, चाहें तो इसमें शहद मिला सकते हैं। जिन्हें अदरक का स्वाद पसंद न हो, वो ऑर्गेनिक अदरक कैंडी और अदरक की चाय ले सकते हैं।

मुंह की दुर्गध दूर करे मुनक्का
- मुंह से दुर्गध आना- कफ विकृति या अपच के कारण यदि मुंह से दुर्गध आती हो तो 5 से 10 ग्राम मुनक्का नियमपूर्वक खाने से दुर्गध दूर हो जाती है।
- सांस फूलना- पके हुए अनानास के 10 ग्राम रस में पीपलामूल, सौंठ और बेहड़े का चूर्ण 2-2 ग्राम तथा एक चुटकी भुना हुआ सुहागा शहद में मिलाकर सेवन करने से श्वास-खांस (सांस फूलना और खांसी) के रोगों में लाभकारी होता है।
- मासिक धर्म में रूकावट- अजवायन 10 ग्राम और पुराना गुड़ 50 ग्राम लेकर 200 मिलीग्राम पानी में पकाकर सुबह-शाम सेवन करें।
- सूखी खांसी- यदि सूखी हो और कफ न निकलता हो तो एकदम सवेरे एक ताजे अमरूद को तोड़कर चबा-चबाकर खाने से खांसी दो-तीन दिन में ही ठीक हो जाती है।

मुहासें हैं, नारियल तेल लगाएं
मां के दूध और नारियल के तेल में पाया जाने वाला लाउरिक एसिड मुंहासोें के इलाज में मददगार साबित हो सकता है। सैन डिएगो कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय (यूसीएसडी) के एक बायोइंजीनियरिंग शोधकर्ता ने एक ऎसी प्रणाली विकसित की है, जिसके जरिए लाउरिक एसिड से भरे बेहद छोटे आकार के कैप्सूलों को चमड़ी के अंदर भेजा जा सकता है।

85 फीसदी किशोर मुहांसों की चपेट में
इस प्रणाली को "स्मार्ट डिलीवरी सिस्टम" नाम दिया गया है। इसके जरिए सामान्य मुहांसे पैदा करने वाले जीवाणु-प्रोपियोनिबैक्टेरियम को खत्म किया जा सकेगा। सामान्य तरह के मुंहासों को "एंक वल्गर्स" नाम से भी जाना जाता है। 85 फीसदी किशोर इसकी चपेट में आते हैं।

चेहरे पर लाल धब्बे और त्वचा में जलन
अकेले अमरीका में चार करोड़ लोग इसके छुटकारा पाने के लिए इलाज करा रहे हैं। इसके कारण चेहरे पर लाल धब्बे पड़ जाते हैं और त्वचा में जलन भी होती है। "स्मार्ट डिलीवरी सिस्टम" बेहद छोटे आकार के कैप्सूलों के माध्यम से त्वचा के अंदर गोल्ड नैनोपार्टिकल्स समाहित करते हैं। ये गोल्ड नैनोपार्टिकल्स त्वचा में उन जीवाणुओं का पता लगाते हैं और उनका इलाज करते हैं, जिनके कारण सामान्य मुहांसे होते हैं।

पूरी तरह सुरक्षित
छोटे आकार के कैप्सूलों में आमतौर पर नारियल के तेल और मां के दूध में मिले लाउरिक एसिड भरा जाता है। ये मनुष्य के इलाज के लिए पूरी तरह सुरक्षित होते हैं। आने वाले दिनों में इनका मनुष्यों पर परीक्षण किया जाना है। इसके बाद मुंहासों का इलाज आसान हो जाएगा।

"दिल" की दवा है चॉकलेट
चॉकलेट के शौकीनों के लिए यह एक अच्छी खबर हो सकती है, क्योंकि अब उन्हें चॉकलेट खाने का एक नया बहाना मिल गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार चॉकलेट दिल से जुड़े रोगों की सबसे कारगर दवा है। यह ब्लड प्रेशर को कम कर हर्ट अटैक के खतरे से भी बचाता है।

स्वीडन के लिंकोपिंग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक शोध से प्राप्त परिणामों के आधार पर दावा किया है कि चॉकलेट खाने से हर्ट अटैक का खतरा कई गुणा तक घट जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार डार्क चॉकलेट में मौजूद कोका शरीर में ब्लड प्रेशर को उत्पन्न करने वाले एंजाइम को नियंत्रित करने में मदद करता है।

शोधकर्ता एंग्रिड पर्सन के अनुसार "हमने पहले किए गए एक शोध में बताया था ग्रीन चाय ब्लड प्रेशर के लिए जिम्मेदार एंजाइम एसीई को नियंत्रित करने में सहायक होता है। हाल ही में एक शोध के दौरान हमने पाया कि ग्रीन टी की तरह ही चॉकलेट में भी एसीई एंजाइम को खत्म करने में कारगर तत्व मौजूद होते हैं।"

कई रोगों से बचाता है प्याज
"प्याज" आपके आंसू भले ही निकालता हो, लेकिन सेहत के नजरिए से यह काफी फायदेमंद है। वैज्ञानिकों का दावा है कि प्याज खाने से दिल संबंधी रोगों का खतरा बहुत हद तक घट जाता है।

वैज्ञानिकों की मानें तो भारतीय खाने में प्याज का इस्तेमाल बैड कोलेस्ट्रोल को शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है, जिससे हर्ट अटैक और स्ट्रोक्स का खतरा कम रहता है। गौरतलब है कि शरीर में कोलेस्ट्रोल का स्तर बढ़ने से ही हर्ट अटैक आता है। प्याज का सेवन शरीर में अच्छे कोलेस्ट्रोल का स्तर बढ़ाने में भी मददगार साबित होता है।

हांगकांग के वैज्ञानिकों ने लाल प्याज के शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव को जानने के लिए यह अध्ययन किया था। इसके लिए वैज्ञानिकों ने उच्च-कोलेस्ट्रोल युक्त आहार में प्याज को शामिल कर उसके प्रभाव को जानने की कोशिश की।

वैज्ञानिकों ने पाया कि जिन लोगों ने आठ सप्ताह तक प्याज का सेवन किया था, उनके शरीर में बैड कोलेस्ट्रोल के स्तर में 20 फीसदी तक की कमी आई। इस अध्ययन के आधार पर हांगकांग के चाइनीज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक झेन यू चेन ने दावा किया है कि प्याज का नियमित सेवन करने से ह्वदय संबंधी बीमारियों के खतरे को कम किया जा सकता है।

नारियल खाएं, मोटापा घटाएं
नारियल का सेवन और कच्चे नारियल का पानी हमेशा से फायदेमंद माना जाता है। अब वैज्ञानिकों ने भी नारियल स्वास्थवर्द्धक गुणों पर मुहर लगा दी है। एक ताजा शोध में पता चला है कि नारियल तेल युक्त आहार न सिर्फ मोटापा कम करने में मददगार होता है, बल्कि यह शरीर में इंसुलिन की मात्रा को भी नियंत्रित करता है।

सिडनी के गार्वन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च के निगेल टर्नर और जिमिंग ये ने हाल ही में चूहों पर नारियल के प्रभाव का अध्ययन किया। अध्ययन के तहत चूहों को नारियल युक्त आहार देकर उनके शरीर पर पड़ने पर प्रभाव का अवलोकन किया गया। वैज्ञानिकों ने पाया कि नारियल युक्त आहार मोटापे को कम करने के साथ ही टाइप-2 डायबिटीज को कंट्रोल करने मेें भी मदद करते हैं। इस अध्ययन के आधार पर वैज्ञानिकों ने उम्मीद जताई है कि इंसानों के शरीर में भी नारियल के सेवन का गहर असर पड़ता है।

वैज्ञानिकों की मानें तो मोटापे की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए नारियल का सेवन फायदेमंद हो सकता है। इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने डायबिटीज पीडितों को भी नारियल युक्त आहार लेने की सलाह दी है। शोधकर्ताओं के अनुसार दूसरे तेलों में पाए जाने वाले लॉन्ग चेन फैटी एसिड के विपरीत नारियल तेल में मिडियन चेन फैटी एसिड पाए जाते हैं। मिडियम चेन फैटी एसिड प्रत्यच तौर पर कोशिकाओं को असर डालते हैं और मोटापे को कम करते हैं।

मौसमी फल खाएं, डायबिटीज भगाएं
एक अध्ययन में पाया गया है कि मौसमी फल खाने से डायबिटीज के इलाज के लिए कारगर हो सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसमें नारिनजेनिन नामक एक प्रकार का एंटीऑक्सीडेंट्स पाया जाता है जिसके कारण इसका स्वाद हल्का कड़वा हो जाता है और यही कड़वापन मधुमेह के लिए इस्तेमाल में आने वाली दवाओं के विकल्प के रूप में समान रूप से काम करता है।

डयाबिटीज में शरीर में स्त्रावित होने वाला हार्मोन असमर्थ होता है जिससे शर्करा का स्तर अनियमित हो जाता है। ऎसे में नारिनजेनिन शरीर की संवेदनशीलता को बढ़ाने के लिए इन्सुलिन को नियमित करता है। साथ ही वैज्ञानिकों का कहना है कि नारिनजेनिन वजन को नियंत्रित करने में भी मददगार होता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि नारिनजेनिन यकृत में वसा को संचित होने से रोकता है। अध्ययन के लेखक जेरूसलेम स्थित हिब्ा्रू विश्वविद्यालय के याकोव नहमियाज का कहना है कि नारिजेनिन, मधुमेह के इलाज के लिए एक कारगर उपाय हो सकता है। लंदन स्थित मधुमेह संस्थान से जुड़े डॉ. लेन फ्रेम कहते हैं यह अनुसंधान अभी प्रारंभिक चरण में ही है और इसमें अभी और विकास करने की जरूरत है।

केले के फायदे अनेक
केला सदाबहार फल है, जो दूसरे फलों के मुकाबले सस्ता होने के साथ ही सहज उपलब्ध होता है। रोजना एक केले का सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है। आहार विशेष्ाज्ञों के अनुसार केला शुगर और फाइबर का बेहतर स्रोत है। केले में थाइमिन, रिबोफ्लेविन, नियासिन और फॉलिक एसिड के रूप में विटामिन ए और विटामिन बी पर्याप्त मात्रा में मौजूद होता है। इसके अलावा केला ऊर्जा का सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है। सुबह नाश्ते में यदि एक केला खा लिया जाए तो लंच तक भूख लगने की संभावना नहीं रहती।

केले के फायदे :

- केला पोटैशियम का प्राकृतिक स्रोत्र है। जिन लोगों को ब्लड प्रेशर की समस्या होती है, उन्हें केले का नियमित रूप से सेवन करना चाहिए।
- हैंगओवर उतारने में केले का मिक्लशेक फायदेमंद होता है। मीठे के रूप में इसमें हनी का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- केले का मिल्क शेक पेट को ठंडक पहुंचाता है। इसके साथ ही यह ब्लड में शुगर के लेवल को भी नियंत्रित करता है।
- केले में काफी मात्रा में फाइबर पाया जाता है। जिससे यह पाचन क्रिया में मदद करता है।
- अल्सर के मरीजों के लिए केले का सेवन फायदेमंद है।
- केले में आयरन भरपूर मात्रा में होता है। इससे खून में हेमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ती है। इसलिए एनिमिया से पीडित रोगियों को केला जरूर खाना चाहिए।
- केला तनाव को कम करने में भी मदद करता है। केले में ट्राइप्टोफान नामक एमिनो एसिड होता है, जो मूड को रिलैक्स करता है।

प्रेग्नेंसी में लें दवा संभलकर
प्रेग्नेंट लेडीज को कोई भी दवा लेने से पहले डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए। भागदौड़ भरी जिंदगी में खुद को अपडेट रखना और फिर घर से लेकर बाहर तक के काम संभालने की टेंशन तो प्रेग्नेंट लेडीज को भी बनी रहती है।

कई बार लेडीज को टेंशन की वजह से नींद नहीं आती और वे डिप्रेशन की शिकार हो जाती हैं। ऎसे में उन्हें डिप्रेशन से निजात पाने के लिए दवाएं लेनी पड़ती है, लेकिन प्रेग्नेंसी के दौरान डॉक्टर की सलाह लिए बैगर नींद की गोली लेने या एंटी डिप्रेशन दवाएं लेने से कभी-कभी मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि एंटी डिप्रेशन दवा लेने से बच्चे का विकास ठीक प्रकार से नहीं हो पाता। साथ ही मिसकैरेज होने की संभावना भी बढ़ जाती है। इसलिए प्रेग्नेंसी के दौरान खुद डॉक्टर बनकर मनमर्जी से दवाएं नहीं लेनी चाहिए।

स्त्री रोग विशेषज्ञ रिचा बहरानी का कहना है कि लंबे समय से एंटी डिप्रेशन दवाएं लेने से कई बार न्यूली बॉर्न बेबी को पिडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट में रखना पड़ जाता है, इसलिए एंटी डिप्रेशन दवाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान स्वयं न लें। डॉक्टर से सलाह लेने के बाद ही यूज करें। अन्यथा बच्चे का कई बार ठीक प्रकार से विकास नहीं हो पाता। इस वजह से बच्चा कई बार बच्चा फिजीकली हैंडीकैप होता है। साथ ही इंट्रा यूटेराइन ग्रोथ रिटार्डेशन होने की संभावना भी बढ़ जाती है।

हो सकता है मेंटली डिस्टर्ब
कभी-कभी खुद डॉक्टर बनना और डॉक्टर के पास जाने से बचना, बड़ी मुश्किलें पैदा कर देता है। स्त्री रोग विशेषज्ञ अरूणिका भटनागर का कहना है कि एंटी डिप्रेशन दवाएं प्रेग्नेंसी के दौरान बैड इफेक्ट डालती हैं। मिसकैरेज की आशंका बढ़ जाती है। कभी-कभी इन दवाओं के सेवन से बच्चे का आईक्यू लेवल लो हो जाता है और बच्चा समान्य बच्चों की तरह कार्य नहीं कर पाता। इसलिए एंटी डिप्रेशन दवाएं बिना डॉक्टर के सलाह लिए बगैर नहीं लेना चाहिए, क्योंकि खुद डॉक्टर बनने से कभी-कभी बच्चे के साथ मां को भी खतरा हो सकता है।

ये हो सकती हैं समस्याएं
बच्चा फिजीकली हैंडीकेप हो सकता है
रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो सकती है
गर्भस्थ शिशु पर असर पड़ सकता है n आईक्यू लेवल कम हो सकता है
बच्चे का विकास ठीक प्रकार नहीं हो पाता
प्री मिच्योर डिलीवरी की आशंका रहती है 

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