"ॐ तत्पुरुषाय विद्ध्महे महादेवाय धिमाही तन्नो रूद्र: प्रचोदयात!!!"

Jun 22, 2015

मलमास में व्रत का महत्व

मलमास (अधिकमास)

अधिकमास कैसे बनता है | How is Adhikmas formed :-
एक सौर वर्ष में 365 दिन तथा 6 घंटे होते हैं और एक चान्द्र मास में 354 दिन तथा 9 घंटे होते हैं. हो सकता है कि सौर मास तथा चान्द्र मास में समीकरण स्थापित करने के लिए ही अधिकमास की रचना की गई हो. विद्वानों के अनुसार एक मल मास से दूसरे मल मास तक की अवधि 28 माह से लेकर 36 माह तक की हो सकती है. इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हर तीसरे वर्ष में एक अधिकमास आता ही है. यदि इस अधिकमास की परिकल्पना नहीं की गई तो चांद्र मास का सारा सिस्टम ही बिगड़ जाएगा.संवत 2072 अर्थात वर्ष 2015 में 17 जून से 16 जुलाई तक अधिकमास का प्रभाव बना रहेगा.

मलमास में व्रत का महत्व | Importance of fasting in Malmas :-
जो व्यक्ति मलमास में पूरे माह व्रत का पालन करते हैं उन्हें पूरे माह भूमि पर ही सोना चाहिए. एक समय केवल सादा तथा सात्विक भोजन करना चाहिए. इस मास में व्रत रखते हुए भगवान पुरुषोत्तम अर्थात विष्णु जी का श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिए तथा मंत्र जाप करना चाहिए. श्रीपुरुषोत्तम माहात्म्य की कथा का पठन अथवा श्रवण करना चाहिए. श्री रामायण का पाठ या रुद्राभिषेक का पाठ करना चाहिए. साथ ही श्रीविष्णु स्तोत्र का पाठ करना शुभ होता है.
मलमास के आरम्भ के दिन श्रद्धा भक्ति से व्रत तथा उपवास रखना चाहिए. इस दिन पूजा - पाठ का अत्यधिक माहात्म्य माना गया है. मलमास मे प्रारंभ के दिन दानादि शुभ कर्म करने का फल अत्यधिक मिलता है. जो व्यक्ति इस दिन व्रत तथा पूजा आदि कर्म करता है वह सीधा गोलोक में पहुंचता है और भगवान कृष्ण के चरणों में स्थान पाता है.
अधिकमास की समाप्ति पर स्नान, दान तथा जप आदि का अत्यधिक महत्व होता है. इस मास की समाप्ति पर व्रत का उद्यापन करके ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और अपनी श्रद्धानुसार दानादि करना चाहिए. इसके अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण बात यह है कि मलमास माहात्म्य की कथा का पाठ श्रद्धापूर्वक प्रात: एक सुनिश्चित समय पर करना चाहिए.
इस मास में रामायण, गीता तथा अन्य धार्मिक व पौराणिक ग्रंथों के दान आदि का भी महत्व माना गया है. वस्त्रदान, अन्नदान, गुड़ और घी से बनी वस्तुओं का दान करना अत्यधिक शुभ माना गया है.


अधिकमास के आरम्भ के दिन क्या करें | What should you do on the beginning day of Adhikmas :-
माह के जिस दिन मलमास का आरंभ हो रहा हो उस दिन प्रात: स्नानादि कर्म से निवृत होकर भगवान सूर्य नारायण का पुष्प, अक्षत तथा लाल चंदन से पूजन करें. फिर शुद्ध घी, गेहूँ और गुड. के मिश्रण से 33 पूएँ बनाएँ. इन पूओं को कांसे के बर्तन में रखकर प्रतिदिन फल, वस्त्र, मिष्ठान और दक्षिणा समेत दान करें. आप यह दान अपनी सामर्थ्यानुसार ही करें. दान करते समय निम्न मंत्र का जाप करें :-
“ऊँ विष्णु रूप: सहस्त्रांशु सर्वपाप प्रणाशन: । अपूपान्न प्रदानेन मम पापं व्यपोहतु ।”
इस मंत्र के बाद भगवान विष्णु से प्रार्थना करते हुए निम्न मंत्र बोलें :-
“यस्य हस्ते गदाचक्रे गरुड़ोयस्य वाहनम । शंख करतले यस्य स मे विष्णु: प्रसीदतु ।।”

पुरुषोत्तम मास में क्या करे | What should you do in Purushottammas :-
जो काम काम्य कर्म अधिकमास से पहले ही आरंभ किए जा चुके हैं उन्हें इस माह में किया जा सकता हे. शुद्धमास में मृत व्यक्ति का प्रथम वार्षिक श्राद्ध किया जा सकता है. यदि कोई व्यक्ति अत्यधिक बीमार है और रोग की निवृति के लिए रुद्र जपादि अनुष्ठान किया जा सकता है.
कपिल षष्ठी जैसे दुर्लभ योगों का प्रयोग, संतान जन्म के कृत्य, पितृ श्राद्ध, गर्भाधान, पुंसवन संस्कार तथा सीमांत संस्कार आदि किए जा सकते हैं. ऎसे संस्कार भी किए जा सकते हैं जो एक नियत अवधि में समाप्त हो रहे हों. इस मास में पराया अन्न और तामसिक भोजन का त्याग करना चाहिए.

अधिकमास या पुरुषोत्तम माह में क्या नहीं करें | What should you not do during Adhikmas :-
मलमास में कुछ नित्य कर्म, कुछ नैमित्तिक कर्म और कुछ काम्य कर्मों को निषिद्ध माना गया है. जैसे विवाह संस्कार, मुंडन संस्कार, नववधु का गृह प्रवेश, नव यज्ञोपवीत कर्म करना, नए वस्त्रों को धारण करना आदि कार्य इस मास में नहीं करने चाहिए. इसके अतिरिक्त नई गाड़ी खरीदना, बच्चे का नामकरण संस्कार करना, देव प्रतिष्ठा करना अर्थात मूर्ति स्थापना करना, कूआं, तालाब या बावड़ी आदि बनवाना, बाग अथवा बगीचे आदि भी इस मास में नहीं बनाए जाते.
काम्य व्रतों का आरंभ भी इस मास में नहीं किया जाता है. भूमि क्रय करना, सोना खरीदना, तुला या गाय आदि का दान करना भी वर्जित माना गया है. अष्टका श्राद्ध का संपादन भी निषेध माना गया है.

आषाढ़् अधिक मास फल 2015 | Ashada Adhik Maas Phal 2015 Purushottammas :-
भारतीय कैलेण्डर चन्द्र मास पर आधारित होता है. जिस चन्द्र मास में सूर्य संक्रान्ति नहीं होती वह माह “अधिक मास” कहलाता है और जिस चन्द्र मास में दो संक्रान्तियों का संक्रमण हो रहा हो अर्थात एक ही चन्द्र मास में दो संक्रान्ति आ रही हों वह “क्षयमास” कहलाता है. इस लेख में हम भाद्रपद अधिक मास की चर्चा करेगें. आम भाषा में अधिक मास को अधिमास, मलमास, पुरुषोत्तम मास आदि के नामों से जाना जाता है.
वर्ष 2015 में अधिक मास की अवधि 17 जून से 16 जुलाई 2015 तक रहेगी.




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