"ॐ तत्पुरुषाय विद्ध्महे महादेवाय धिमाही तन्नो रूद्र: प्रचोदयात!!!"

Nov 17, 2011

दिवाली

असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक तथा अंधेरों पर उजालों की छटा बिखेरने वाली हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या के दिन पूरे भारतवर्ष में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है. इसे रोशनी का पर्व भी कहा जाता है. दीपावली त्यौहार हिन्दुओं के अलावा सिख, बौध तथा जैन धर्म के लोगों द्वारा भी हर्षोल्लास पूर्वक मनाया जाता है. यूं तो इस महापर्व के पीछे सभी धर्मों की अलग-अलग मान्यताएं हैं, परन्तु हिन्दू धर्म ग्रन्थ में वर्णित कथाओं के अनुसार दीपावली का यह पावन त्यौहार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के 14 वर्ष के बाद बनवास के बाद अपने राज्य में वापस लौटने की स्मृति में मनाया जाता है. इस प्रकाशोत्सव को सत्य की जीत व आध्यात्मिक अज्ञानता को दूर करने का प्रतीक भी माना जाता है.
परम्पराओं का त्यौहार दीपावली में मां लक्ष्मी व गणेश के साथ मां सरस्वती की पूजा भी की जाती है. चूंकि गणेश पूजन के बिना कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है, इसलिए लक्ष्मी के साथ विघ्नहर्ता का पूजन भी किया जाता है और धन व सिद्धि के साथ ज्ञान भी पूजनीय है, इसलिए ज्ञान की देवी मां सरस्वती की भी पूजा होती है. इस दिन दीपकों की पूजा का विशेष महत्व होता है, इसलिए भक्तों को चाहिए कि वह दो थालों में 6 चौमुखे दीपक को रखें और फिर उन थालों को 26 छोटे-छोटे दीपक से सजाएं.
ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस दिन यदि कोई श्रद्धापूर्वक मां लक्ष्मी की पूजा करता है तो, उसके घर में कभी भी दरिद्रता का वास नहीं होता और वह सदा ही अन्न, धन, धान्य व वैभव से संपन्न रहता है. दीपावली का पर्व समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का सन्देश फैलता है.

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