सुख-समृद्धि, यश और वैभव का पर्व धनतेरस के दिन धन के देवता कुबेर और मृत्यु के देवता सुर्यपुत्र यमराज की पूजा का बड़ा महत्व है. हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के त्रयोदशी तिथि को मनाए जाने वाले इस महापर्व के बारे में पौराणिक मान्यता है कि इसी दिन देवताओं के वैद्य धनवंतरी ऋषि अमृत कलश सहित सागर मंथन से प्रकट हुए थे, जिस कारण इस दिन धनतेरस के साथ-साथ धनवंतरी जयंती भी मनाया जाता है. नई चीजों के शुभ कदम के इस पर्व में मुख्य रूप से नए बर्तन या सोना-चांदी खरीदने की परंपरा है. आस्थावान भक्तों के अनुसार चूंकि जन्म के समय धनवंतरी के हाथों में अमृत का कलश था, इसलिए इस दिन बर्तन खरीदना अति शुभ होता है.
कहा जाता है कि इसी दिन यमराज से राजा हिम के पुत्र की रक्षा उसकी पत्नी ने किया था, जिस कारण दीपावली से दो दिन पहले मनाए जाने वाले ऐश्वर्य का त्यौहार धनतेरस पर सांयकाल को यमदेव के निमित्त दीपदान किया जाता है. इस दिन को यमदीप दान भी कहा जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से यमराज के कोप से सुरक्षा मिलती है और पूरा परिवार स्वस्थ रहता है. चूंकि पीतल भगवान धनवंतरी की धातु मानी जाती है, इसलिए इस दिन पीतल खरीदना भी शुभ माना जाता है. इस दिन घरों को साफ़-सफाई, लीप-पोत कर स्वच्छ और पवित्र बनाया जाता है और फिर शाम के समय रंगोली बना दीपक जलाकर धन और वैभव की देवी मां लक्ष्मी का आवाहन किया जाता है.
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